अन्य भाषाओं में Tulsi के नाम
संस्कृत – वृन्दा , सुगन्धा , अमृता , पत्र पुष्पा , सुरसा , सुलभा , बहुमंजरी
हिन्दी – तुलसी
तेलगु – तुलसी
गुजराती – काली वा धौली तुलसी
मराठी – तुलस ,
तुलसी ओसिमम सैंकटम
अंग्रेज़ी – व्हाइट बेसिल
परिचय
भारत में Tulsi का पौधा अत्यन्त पूज्य माना जाता है । पुराणों में इसके सम्बन्ध में कुछ कथाएँ अंकित हैं । कर्मकाण्ड और देवपूजन में इसको श्रेष्ठ स्थान दिया जाता है । तुलसी के धार्मिक महत्व के कारण हर घर के आँगन में इसके पौधे लगाए जाते हैं । इसकी कई जातियाँ मिलती हैं जिनमें श्वेत व कृष्ण प्रमुख हैं । काली तुलसी श्वेत की अपेक्षा अधिक लाभदायक मानी जाती है ।
प्रयोग
इसकी कोमल पत्तियों को प्रतिदिन खाली पेट सुबह खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है । साथ ही सर्दी , जुकाम , खाँसी , गले की खराश आदि के लिए काली मिर्च डालकर इसकी चाय सुबह – शाम पीने से लाभ होता है ।
विभिन्न रोग व उपचार
साधारण ज्वर
Tulsi के पत्ते , श्वेत जीरा , छोटी पीपल तथा शक्कर , चारों को कूटकर प्रातः – सायं देने से साधारण ज्वर में लाभ होता है ।
Tulsi के पत्तों का चूर्ण 1 भाग , शुंठी चूर्ण 1 भाग तथा पिसी अजवायन मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से ज्वर का वेग कम होता है ।
टायफाइड ( ज्वर )
Tulsi पत्र 10 तथा जावित्री आधा ग्राम से 1 ग्राम तक पीसकर शहद के साथ चटाने से लाभ होता है ।
काली Tulsi , वन तुलसी तथा पुदीना , इनका बराबर मात्रा में स्वरस लेकर 3 से 7 दिन तक सुबह , दोपहर , शाम पिलाने से टायफाइड ज्वर में लाभ होता है ।
मलेरिया ज्वर
Tulsi का पौधा मलेरिया प्रतिरोधक है । तुलसी के पौधे को छूकर वायु में कुछ ऐसा प्रभाव उत्पन्न हो जाता है कि मलेरिया के मच्छर वहाँ से भाग जाते हैं । इसके पास नहीं आते हैं ।
मलेरिया में Tulsi पत्रों का क्वाथ 2-3 घंटे के अंतर से सेवन करने से लाभ होगा ।
Tulsi के पत्रों का स्वरस 5 से 10 मिली लीटर में मिर्च चूर्ण मिला दिन में तीन बार मलेरिया ज्वर में प्रयोग करें । लाभ होगा ।
कफ प्रधान ज्वर
तुलसीदल 21 नग , लवंग 5 नग , अदरक का रस आधा ग्राम को पीसकर छानकर गर्म करें , फिर इसमें 10 ग्राम शहद मिलाकर सेवन करें । कफज ज्वर में आराम आता है ।
Tulsi के पत्तों को पानी में पकाकर जब आधा पानी शेष रह जाए , छानकर , चुटकीभर सेंधानमक मिलाकर गुनगुना पीने से कफ प्रधान ज्वर में लाभ होता है ।
अतिसार एवं मरोड़
Tulsi के पत्ते 10 , जीरा 1 ग्राम दोनों को पीसकर शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार चाटने से दस्तों में तथा मरोड़ एवं पेचिश में लाभ होता है ।
Tulsi की फांट 50-60 मिली लीटर में जायफल का चूर्ण मिलाकर 3-4 बार पीने से अतिसार में लाभ होता है ।
कान के रोग
Tulsi के पत्तों का ताज़ा रस गर्म करके 2-2 बूंदें कान में टपकाने से कान का दर्द तुरन्त ठीक हो जाता है ।
Tulsi के पत्ते , एरण्ड की कोपलें और थोड़े नमक को पीसकर उसका गुनगुना लेप करने से कान के पीछे की सूजन ठीक हो जाती है ।
सफेद दाग तथा झाई
Tulsi की जड़ को पीसकर उसमें सोंठ मिलाकर , प्रातः जल के साथ लेने से कुष्ठ में लाभ होता है अथवा तुलसी की जड़ को पीसकर शहद के साथ दिन में 3-4 बार चाटने से सफेद दाग तथा झाईं में लाभ होता है ।
सर्प विष
सर्प विष में Tulsi के पत्तों का स्वरस 5 से 10 मिली लीटर पिलाने से और इसकी मंजरी और जड़ों का लेप बार बार दंशित स्थान पर करने से सर्प दंश की पीड़ा में लाभ मिलता है । अगर रोगी बेहोश हो गया हो तो इसके रस को नाक में टपकाते रहना चाहिए ।
दाँत व गले के रोग
काली मिर्च और Tulsi के पत्तों की गोली बनाकर दाँत के नीचे रखने से दाँत का दर्द दूर हो जाता है ।
Tulsi के रस युक्त जल में हल्दी और सेंधानमक मिलाकर कुल्ले करने से मुख , दाँत तथा गले के सब विकार दूर हो जाते हैं ।
शक्ति वृद्धि के लिए
Tulsi के 20 ग्राम बीजों के चूर्ण में 40 ग्राम मिश्री चूर्ण मिलाकर महीन – महीन पीसकर 1 ग्राम की मात्रा में शीतऋतु में कुछ दिन सेवन करने से वात व कफ के रोगों में लाभ होता है । दुर्बलता दूर होती है , शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और स्नायुमंडल सशक्त होता है ।
सर्दी , खांसी , जुकाम आदि
खाँसी में Tulsi के पत्तों का स्वरस 5 से 10 मिली लीटर में काली मिर्च का चूर्ण डालकर पीने से खाँसी का वेग कम हो जाता है ।
Tulsi की मंजरी , सोंठ , प्याज़ का रस और शहद मिलाकर चाटने से सूखी खाँसी और बच्चे के दमे में लाभ होता है ।
पुरानी खाँसी तथा दमे में Tulsi दल 10 , बासा के पीले रंग के तीन पत्र , काली मिर्च 1 तथा अदरक मटर के 4-6 दानों के बराबर , गिलोय – कांड का 6 इंच लम्बा टुकड़ा , सब चीज़ों को जौकुट कर 1 गिलास जल में पकायें । आधा शेष रहने पर 10-15 ग्राम गुड़ मिलाकर 3 खुराक बना लें । 4-4 घंटे के अंतर से सेवन करने से पुरानी खाँसी में लाभ होता है ।
वमन
Tulsi के पत्तों का रस , छोटी इलायची तथा अदरक का रस सेवन करने से वमन ( उल्टी ) तथा जी मिचलाने में लाभ होता है ।
तुलसी में कई जैव सक्रिय रसायन पाए गए हैं, विशेष रूप से ट्रानिन, सैवनोनिन, ग्लाइकोसाइड और अल्कलॉइड। उनका अभी तक पूरी तरह से विश्लेषण नहीं किया गया है। मुख्य सक्रिय तत्व उड़ने वाले पीले तेल का एक प्रकार है जिसकी मात्रा संगठन के स्थान और समय के आधार पर भिन्न होती है। तेल 0.1 और 0.3 प्रतिशत के बीच होना सामान्य है। ‘वेल्थ ऑफ इंडिया’ के अनुसार, इस तेल में लगभग 71 प्रतिशत यूजेनॉल, बीस प्रतिशत यूजेनॉल मिथाइल ईथर और तीन प्रतिशत कारवाकोल होता है।
श्री तुलसी के पास श्यामा की तुलना में थोड़ा अधिक तेल है और इस तेल का विशिष्ट गुरुत्व भी थोड़ा अधिक है। तेल के अलावा, लगभग 63 मिलीग्राम विटामिन सी और 2.5 मिलीग्राम प्रतिशत कैरोटीन होता है। तुलसी के बीजों में हरी तुलसी का तेल लगभग 16.7 प्रतिशत पाया जाता है। इसके घटक कुछ साइटोस्टेरोल, कई फैटी एसिड, मुख्य रूप से पामिटिक, स्टीयरिक, ओलिक, लिनोलिक और लिनोलिक एसिड हैं। तेल के अलावा, बीज में बलगम प्रचुर मात्रा में होता है। इस श्लेष्म के मुख्य घटक पेंटोस, हेक्सोरोनिक एसिड और राख हैं। ऐश लगभग 0.2 प्रतिशत है।
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