अन्य भाषाओं में Mulethi के नाम
संस्कृत – यष्टिमधु , क्लीतक , मधूलिका
बंगाली – गहिमचु , यष्टिमधु
हिन्दी – Mulethi
अंग्रेज़ी – लाइकोरिस रूट
गुजराती – जेठीमधु
लैटिन – ग्लाइकरहिज़ा ग्लेबा
मराठी – ज्येष्ठीमधु

परिचय
Mulethi भारत में हिमालय के तराई वाले प्रदेशों में उत्पन्न होती है । यह इराक , सीरिया , दक्षिणी यूरोप , ग्रीस और टर्की में भी पैदा होती है । इसके वृक्ष की ऊँचाई 1.5 मीटर के करीब होती है । इसके पत्ते नुकीले , अंडे के आकार वाले होते हैं जो संयुक्त रूप से 4-6 जोड़ों में होते हैं और आखिर में 1 पत्ती पर खत्म हो जाते हैं ।
इसके फूल दिखने में बैंगनी या लाल रंग के होते हैं । इसकी फलियाँ लम्बी और चपटी होती हैं । प्रत्येक फली में लगभग 2 से 5 बीज तक निकलते हैं । इसकी जड़ और तना ज़मीन में रहता है , जिसका छिलका हटाने के बाद या शुद्ध रूप में सुखाकर ही इसका प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है ।
Mulethi सूंघने में सुगंधित होती है । स्वाद में मीठी और थोड़ी सी चरपरी होती है । सदियों से Mulethi का प्रयोग आयुर्वेदिक , यूनानी , चीनी एवं तिब्बती औषधि निर्माण में किया जा रहा है । एलोपैथी और होम्योपैथी में भी विभिन्न रोगों के निवारण के लिए Mulethi का प्रयोग किया जा रहा है ।
प्रयोग
Mulethi का प्रयोग खाँसी , स्वर सुधारने , वात – पित्त कफ के रोगों , दमा एवं श्वास रोग में किया जाता है ।
विभिन्न रोग व उपचार
पेशाब में जलन
Mulethi की जड़ का थोड़ा – सा चूर्ण 200 मिली लीटर दूध के साथ लें । लाभ होगा ।
रवाँसी
Mulethi के टुकड़े को मुँह में रखकर चूसने से खाँसी का बार – बार आना रुकता है । बलगम निकलने लगता है और गले की खराश दूर होती है ।
मुँह में छाले होना
Mulethi के टुकड़े पर शहद लगाकर चूसने से मुँह के छाले दूर हो जाते हैं ।
हिचकी आना
यदि Mulethi का बारीक चूर्ण शहद में मिलाकर नाक में टपकाया जाए तो हिचकी आनी बंद हो जाती है ।
Mulethi का काढ़ा बनाकर ठंडा होने पर नाक में टपकाएँ । हिचकी में लाभ होता है ।
5 ग्राम Mulethi का चूर्ण शहद में मिलाकर रोगी को दें । लाभ होगा ।
सर्दी से उत्पन्न जुकाम और सिरदर्द
Mulethi के बीजों को पीसकर सूंघने से सर्दी से होने वाले सिरदर्द और जुकाम में लाभ होता है ।
खून की उल्टी
Mulethi का चूर्ण 1 से 4 ग्राम तक थोड़े से शहद के साथ सेवन करने से खून की उल्टी आनी बंद हो जाती है ।
स्तनों में दूध कम आना
2-2 चम्मच शतावर और Mulethi की जड़ का चूर्ण 250 मिली लीटर दूध में उबालें । जब दूध आधा रह जाए तो इसकी आधी – आधी मात्रा 8 घंटे के अन्तराल पर सेवन करें । स्तनों में दूध की वृद्धि होती है ।
पेट में दर्द व ऐंठन
Mulethi की जड़ का 1 चम्मच चूर्ण दूध के साथ सेवन करने से व्रण और क्षत समाप्त हो जाते हैं ।
Mulethi की जड़ के चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से पेट दर्द और ऐंठन समाप्त हो जाती है ।
शरीर की बल वृद्धि के लिए
1 चम्मच Mulethi की जड़ का चूर्ण , 1 चम्मच घी और आधा चम्मच शहद , तीनों को मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से शरीर का बल बढ़ता है , परन्तु यह प्रयोग 4-6 महीने तक लगातार जारी रखने पर लाभ होगा ।
मिर्गी का दौरा
Mulethi का बारीक चूर्ण घी में डालकर चाटें । इससे मिर्गी के दौरे में पर्याप्त लाभ होता है ।
आँरवों की ज्योति बढ़ाने व जलन दूर करने के लिए
Mulethi और सौंफ को समभाग लेकर इन्हें पीसकर मिला लें । फिर रोज़ाना 1-1 चम्मच चूर्ण दिन में 2-3 बार लेने से आँखों की रोशनी बढ़ती है तथा जलन में लाभ होता है ।
परिचय
यह दलदल व नमी वाले देशों में उत्पन्न होती है।मुख्यतः वच का उत्पत्ति स्थान पूर्वी यूरोप है । हमारे देश में काश्मीर , मेघालय , हिमाचल प्रदेश आदि स्थानों पर वच पैदा होती है । इसका पौधा जड़ से निकलता है ,
जिसकी पत्तियाँ लम्बी लम्बी व सुगन्धित होती हैं । वच की जड़ चारों तरफ फैली हुई व अत्यन्त सुगन्धित होती है । इसी वच के टुकड़े बाज़ार में घोरवच के नाम से बेचे जाते हैं ।
प्रयोग
वच का प्रयोग मुख्य रूप से मस्तिष्कगत रोगों के लिए किया जाता है । इसको पीसकर शहद के साथ सेवन करने से स्मरणशक्ति का विकास होता है । जिन बच्चों की वाणी स्पष्ट नहीं होती है उनमें इसके प्रयोग से शीघ्र ही लाभ होता है एवं बच्चा स्पष्ट उच्चारण सहित बोलने लगता है ।
अधिक मात्रा में इसके सेवन से वमन होता है । इसके अतिरिक्त यह उन्माद , अपस्मार , मिर्गी में भी लाभदायक है । इससे पेट की मरोड़ ठीक होती है । मंदाग्निी व दस्त के लिए अति उत्तम औषधि है । यह दमा रोग में भी अत्यन्त उपयोगी है ।
विभिन्न रोग व उपचार
मिर्गी रोग
आधा चम्मच वच की जड़ का चूर्ण शहद में मिलाकर रोगी को दें । मिर्गी रोग में लाभ होता है ।
नाड़ी रोग
नाड़ियों में सूजन और दर्द की स्थिती में रोगी को आधा ग्राम वच की जड़ का चूर्ण 1 चम्मच शहद के साथ दें ।
शीघ्र प्रसव के लिए
एक हिस्सा वच और उससे दो गुना पीपरामूल का चूर्ण मिलाकर आधा चम्मच की मात्रा में थोड़े से शहद के साथ दिन में 2-3 बार देने से गर्भवती को प्रसव शीघ्र हो जाता है ।
सिर दर्द
वच की जड़ को चन्दन की तरह घिसकर माथे पर लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाएगा ।
आधासीसी का दर्द
यह दर्द सिर के दाएँ या बाएँ भाग में होता है , जिसे माइग्रेन या हेमीक्रोनिया के नाम से जाना जाता है । समान मात्रा में वच की जड़ और पीपल की छाल का चूर्ण महीन कपड़े में डालकर , पोटली बनाकर रोगी को सुंघाएँ तो आधासीसी के दर्द में लाभ होता है
पागलपन
5 ग्राम वच की जड़ और 50 ग्राम ब्राह्मी लेकर उनका चूर्ण बनाकर आधा से 1 चम्मच की मात्रा में लगातार कुछ सप्ताह तक दिन में 2-3 बार देने से उन्माद रोग में लाभ होता है , परन्तु इलाज लगातार जारी रखें ।
मुँह के रोग
मुँह के व्रण ( अलसर ) , जुबान पर सूजन , शुष्कता और छाले पड़ जाने की स्थिती में वच का छोटा – सा टुकड़ा लेकर उसे जिह्वा पर धीरे – धीरे रगड़ें या जड़ को पानी में उबालकर उसी पानी को मुँह में डालकर 5-6 बार घुमाएँ , परन्तु पानी गुनगुना हो । मुँह के रोगों में लाभ होता है ।
फोड़े और घाव भरने के लिए
समान मात्रा में वच की जड़ का चूर्ण और पिसा हुआ कपूर मिलाकर घावों आदि पर लगाने से घाव शीघ्र भर जाते हैं ।
स्मरणशक्ति की दुर्बलता
1 कप दूध के साथ आधा ग्राम वच की जड़ का चूर्ण दिन में दो बार सेवन करने से याददाश्त बढ़ जाती है ।
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