नमस्कार दोस्तों, आज के इस आर्टिकल में आप जानने वाले हो baheda ke Best 9+ upyog जो आपके बहुत काम सकती है। इसलिए आप से निवेदन है की आप इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़े।
कई बार हमारे पास baheda होता तो है पर उसके उपयोग हमें पता नहीं होते ऐसे में हमको कई बार इसका उपयोग करना पड़ता है। इसलिए हम आपको बताने वाले है baheda के उपयोग।

अन्य भाषाओं में baheda के नाम
संस्कृत – विभीतक , अक्ष , कर्षफल
बंगला – बहेड़ा
हिन्दी- बहेड़ा
तेलगु – ताड़िकाय , वल्ला तांडेचेट्टे
गुजराती – बहेड़ा , वेड़ा
अंग्रेजी – बेलेरिक माइरोबैलन्ज
मराठी – बेघड़ा , घांटिक वृक्ष
लैटिन – टर्मिनेलिया बेलेरिका
परिचय
यह भारतवर्ष में प्रायः सभी जगह पाया जाता है । इसका तना मोटा , सीधा और गोलाकार होता है । baheda के पत्ते महुए के पत्तों के समान ही होते हैं । इसके फल बेर के समान गोल होते हैं । इसके अन्दर की मींगी मीठी होती है । baheda दो प्रकार के होते हैं छोटे व बड़े।औषधीय प्रयोग में इसका छिलकाही काम में लाया जाता है । बसन्तऋतु में इसके पुराने पत्ते झड़ जाते हैं ।
प्रयोग
baheda का प्रयोग बालों के लिए , शारीरिक शक्ति बढ़ाने , नेत्रों की ज्योति बढ़ाने तथा काम शक्ति बढ़ाने के लिए किया जाता है ।
प्रयोग में सावधानी
यदि baheda के फल की गुठली या मींगी का अधिक मात्रा में सेवन किया जाए तो इससे नशा उत्पन्न होता है और शरीर पर विषैला प्रभाव भी पड़ता है ।
विभिन्न रोग व उपचार
पेट के रोग
अपच और दस्त में 1 से 3 ग्राम baheda के छिलके का काढ़ा पीने से लाभ होता है । दस्त की शिकायत होने पर baheda के फल को जलाकर उसकी भस्म तैयार करके एक चम्मच की मात्रा में थोड़ा सेंधानमक मिलाकर दिन में 3-4 बार लेने से लाभ होता है ।
बच्चों को कब्ज़
baheda के फल को पत्थर पर घिसकर बच्चे को चौथाई से आधा चम्मच की मात्रा में आयु के अनुसार दूध के साथ देने से कब्ज़ दूर होता है ।
नेत्रों की ज्योति बढ़ाने के लिए
नेत्रज्योति बढ़ाने के लिए baheda के छिलके का चूर्ण समान मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करने से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है । यह मात्रा सुबह – शाम कुछ सप्ताह तक लें ।
नपुंसकता
3 ग्राम baheda के चूर्ण में 6 ग्राम गुड़ मिलाकर प्रतिदिन सुबह – शाम सेवन करने से नपुंसकता मिटती है और कामोद्दीपन होता है ।
चक्कर आना
baheda और जवासे के 50 से 60 मिली लीटर काढ़े में 1 चम्मच घी मिलाकर दिन में तीन बार पीने से पित्त और कफ का बुखार ठीक हो जाता है और आँखों के आगे अँधेरी आना व चक्कर आना मिट जाता है ।
बालों के रोग
एक कप पानी में baheda का चूर्ण 2-3 चम्मच डालकर रात में भिगो दें । सुबह इस पानी से बालों की जड़ों की मालिश करें और एक घण्टे बाद सिर धो लें । ऐसा करने से बालों का समय से पहले गिरना बन्द हो जाएगा ।
बालों के असमय झड़ने , सफेद होने और रूसी होने की हालत में baheda के बीजों का तेल 25 मिली लीटर तीन गुने नारियल के तेल में मिलाकर बालों पर लगाएँ
स्वाँसी
baheda के छिलके को मुँह में डालकर चूसने से खाँसी मिट जाती है । बकरी के दूध में अडूसा , कालानमक और baheda का छिलका डालकर पकाकर खाने से तर और सूखी दोनों प्रकार की खाँसी मिट जाती है ।
ज्वर
baheda के छिलके का 40 से 60 मिली लीटर क्वाथ सुबह – शाम पीने से पित्त एवं कफ ज्वर में लाभ मिलता है ।
लार का बहना
डेढ़ ग्राम baheda के छिलके का चूर्ण कर समान मात्रा में शक्कर मिलाकर कुछ दिन खाने से मुँह से लार का बहना बन्द हो जाता है ।
मंदाग्नि
baheda के छिलके की 3 से 5 ग्राम चूर्ण को भोजन के बाद फंकी लेने से पाचनशक्ति तीव्र होती है और मंदाग्नि मिटती है । आमाशय को ताकत मिलती है ।
श्वास रोग
baheda और हरड़ की छाल बराबर – बराबर मात्रा में लेकर उनका चूर्ण बना के 4 ग्राम की मात्रा रोज गर्म पानी से सेवन करने से श्वास और कास मिटता है ।
हृदय वात
baheda के छिलके का चूर्ण तथा अश्वगन्धा का चूर्ण समान मात्रा में मिलाकर 4 से 5 ग्राम की मात्रा लेकर उसमें गुड़ मिलाकर उष्ण जल के साथ सेवन करने से हृदय वात नष्ट होती है ।
कण्डू
baheda के फल की मींगी का तेल कण्डू रोग में लाभकारी है तथा दाहनाशक है । इसकी मालिश करने से जलन मिट जाती है ।
पित्तशोथ
baheda की मींगी का लेप करने से पित्तजन्य शोथ में आराम मिलता है ।
इसका पत्ता 3-4 भागों में होता है जो एक या डेढ़ इंच के आकार का होता है । इस पर लम्बी – लम्बी लकीरें उभरी होती हैं । यही बीज सौंफ के नाम से जाने जाते हैं । यही बीज हरे या पीले रंग के होते हैं । खाने में मधुर होते हैं और इनकी सुगन्ध मन को भाती है । सुगन्ध के कारण ही प्राचीनकाल से विभिन्न व्यंजनों में इसका उपयोग होता है । चिकित्सा में भी इसका प्रयोग किया जाता है ।
प्रयोग
सौंफ का प्रयोग भोजन के बाद किया जाता है । इसका स्वरस मेधाशक्ति को बढ़ाने वाला तथा दृष्टिवर्धक है । यह वमन , तृष्णा , अग्निमांद्य ( भूख न लगना ) , अजीर्ण , उदरशूल , आध्मान ( पेट फूलना ) , प्रवाहिका आदि पाचन संस्थान के रोगों में विशेष लाभदायक है । इसे स्त्रियों में दूध की कमी को बढ़ाने एवं पुरुषों में शुक्रवृद्धि के लिए भी दिया जाता है ।
विभिन्न रोग व उपचार
पेट का भारीपन और कब्ज़
एक भाग सौंफ के चूर्ण में तीन गुना गुलाब का गुलकन्द मिलाकर रोजाना सुबह – शाम एक – एक चम्मच की मात्रा में गरम जल या दूध के साथ सेवन करें । पेट का भारीपन तथा कब्ज दूर होता है ।
अतिसार
थोड़ी – सी सौंफ को तवे पर हल्का लाल या भूरा होने तक सेकें । फिर उसमें बराबर की मात्रा में कच्ची सौंफ मिलाकर उसी में मिश्री भी मिलाएँ । इन सबको बारीक पीसकर या बिना पीसे ही 1 से 2 चम्मच तक की मात्रा में गाय की लस्सी के साथ दिन में 3 बार सेवन करें । अतिसार में लाभ होता है ।
रुका हुआ मासिक धर्म
2 से 5 ग्राम सौंफ यवकुट कर लें और इतनी ही मात्रा में गुड़ लेकर दोनों को एक लीटर पानी में औंटाएँ और काढ़ा तैयार करके गुनगुना पिलाएँ । इससे रुका हुआ मासिकस्राव पुन : चालू हो जाता है ।
नेत्र रोग
सौंफ के पत्तों को पानी में उबालकर जल को ठण्डा कर लें और इसी जल से आँखें धोएँ । यह कमज़ोर नज़र , दुखती आँखों तथा आँखों की लाली और सूजन के लिए लाभकारी है ।
पेट के कीड़े
ये कीड़े छोटे आकार के सूत के समान होते हैं । ये रोगी का खून पीते रहते हैं । इनके कारण पैरों में सूजन , कमज़ोरी और पीलापन , कभी दस्त , कभी कब्ज़ तथा पेट में अफारा आदि रोगों के लक्षण पैदा होते हैं । बच्चों को सौंफ के तेल की 5 से 10 बूंदें तथा वयस्कों को 30 से 60 बूंदें शक्कर के साथ देने से उक्त सभी उपद्रवों में लाभ पहुँचता है ।
यह प्रयोग 3-4 दिन तक करें और बाद में 5 से 15 मिली लीटर सौंफ का तेल पिला दें । ऐसा करने से कीड़े जिन्दा या मरे हुए शौच के ज़रिए बाहर निकल आते हैं ।
अधिक प्यास और ज्वर
एक लीटर पानी में 5 से 10 ग्राम सौंफ कूटकर डालें और औंटाएँ । जब पानी आधा रह जाए तो छानकर 5 से 10
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